"THINK RICH LOOK POOR"

Thought of the day....

Things that are done,it is needless to speak about: Things that are past it is needless to blame.....

Friday, July 23, 2010

आक्रोश




आज आम आदमी के अंदर आक्रोश है, आज हम आपको इन कुछ तस्वीरों से यह दिखाने का काम कर रहे है,पत्रकारिता को लोकतन्त मे 4 स्तंभ का दर्जा दिया गया है,मगर पत्रकारिता को मैंने स्रिफ गरीबो से दूर ही  देखा है.भला पत्रकारिता गरीबो से दूर क्यों ना हो उनके पास कोई कहानी नहीं होती मगर अगर किसी नेता,अभिनेता  या क्रिकेटर को शूट करना हो तो बोहोत से पत्रकारिता से जुड़े लोग उस मे जाना पसंद करेंगे.

किसी का गुस्सा या आक्रोश को ही दिखाना ही पत्रकारिता नहीं है,मगर कभी कभी खबर का मोड़ गरीबो के लिए भी होना होगा तभी ही पत्रकारिता को सही मायनों मे जाना जा सकता है.

जय प्रकाश नायारण ने भी मीडिया को यही सन्देश दिया था की गरीबो के साथ चलो मगर उस दौर की मीडिया गरीबो की आवाज़ भी उठा दिया करती थी मागर  आज की मीडिया को स्रिफ कुछ लोगो की मुट्टी मे बंद पाया जाता है. 

पत्रकारिता को ही लोग समाज समजते है जो पत्रकारिता के दुवारा जो दिखाया जाता है लोग को वही सच लगता है चाहे वोह कुछ भी हो.मीडिया को फिल्म स्टार या क्रिक्केटर की पेरसोनल लाइफ दिखाना इतना पसंद हो गया है की पुरे दिन मे हर चानेल मे यही दीखता है.क्या मुद्दों की कमी है या पत्रकारिता की? 

48 %जनता गरबी मे जी रही है मगर यह मुद्दा मैंने शायद ही कभी संसद मे,न्यूज़ पेपर,न्यूज़ चानेल मे देखा हो,इस मुद्दे को एक दो बार उठा देना पत्रकारिता नहीं है इस के खिलाफ लड़ाई लड़ना एक तरह की पत्रकारिता होनी होगी तभी सरकार को फर्क पड़ सकता है,


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