बस अब गरीबी जाने वाली ही है देश से ,
यह सुनते सुनते उम्र के ७० बरस गए....
कफ़ी आज़मी.
कफ़ी दिन हुए की मै अपने आप से अक्सर यह पुच जाता की यह लोग कैसे २० रुपए मे अपना दिन गुज़र लेते है,
अगर मै होता थो यह कभी नहीं कर पाता..
मुझे इन सब बातो से करना भी क्या है भला मेरे घर मै थो २ वक़्त का खाना है और जिंदगी मजे मै चल रही है,मगर खुद से नजर नहीं मिला पाता जब इन लोग का सामना होता है मेरा फूटपाथ मे..
जब कोई रिक्क्षा वाला मुझ से २० रुपए मांग लेता है थो मेरा खून जल जाता है भला क्यूँ न जले वोह भला कोई सरकारी बाबु थोड़ी है जिस को मे खुशी खुशी टेबल के नीचे से कुछ नोट या कुछ रुपए के बण्डल दे दू , अरे साहब यह लोग मेहनत करते है बस यह सरकारी बाबु नहीं है जिन पर मे हमेशा मेहरबान रहू...
यह तो मेरे देश का गरीब तपका है जिस को हर कोई नाराज़ अंदाज़ करता है तो भला मे क्यूँ ना करू...
हाँ अगर यह गरीब सरकारी बाबु होते तो मे भी इन की उतनी ही खातिरदारी करता जितनी कभी किया करता हु..
4 comments:
bhai jan apke vichar to bahaut hi ache hai.
good sahi kahah jaanab waise yeh tho bilkool sach likha hai khoon jaltha hai
thanks satish
very nice bikes!
So great to see you my dear Rohit,
you are a terrific friend!
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